Monday, 22 October 2012

मुझे नहीं जानना, उनकी शख्सियत को दुनिया
किस पैमाने पर आंकती है//
मेरे लिए तो इतना पर्याप्त है कि
खिलते फूल सी निश्छल मुस्कान में
एक निर्मल आत्मा  झांकती है
  उमाकान्त

Monday, 15 October 2012

फैज़ की ग़ज़ल के एक शेर का भाव उधार लेकर
अच्छे दिन आते आते रास्तों में भटक गए
बुरे दिन जाते जाते दरवाजों में अटक गए
दरअसल जो घटा है वो यू है कि
पुरानी स्थितियों पर नये शीर्षक लटक गए
                                    उमाकान्त 

Saturday, 13 October 2012

कुछ तो है


प्यार के दर्पण में प्रतिबिम्बित,
जो भी है वो कुछ तो है
दिल के गलियारे रोशन हैं
ये खुदा नहीं, पर कुछ तो है
            उमाकान्त

Friday, 12 October 2012

मैं कौन हूँ?

रास्ता हूँ , न मैं कोई ठोर हूँ ,
मैं तो बस एक लहर के बतौर हूँ
जब चला था तो मैं कुछ और था 
अब रुका हूँ तो मैं कुछ और हूँ
                                   ----- उमाकांत

Thursday, 11 October 2012

मेरे सारे नए-पुराने दोस्तों को संबोधित/समर्पित:



हम तो बस चुके, थोड़े से बाकी हैं,
देने को कुछ नहीं, मांगने को काफी है
तुम्हारी यादों के किसी कोने में ठहरे हैं,
शेष यात्रा के लिए इतना ही काफी है|
                                उमाकांत